Saturday, March 6, 2010
पत्रकारिता एक जंग.......
अगर पत्रकारिता की बात करे तो मै यही कहूँगा की पत्रकारिता एक मिशन है जिसमे अपनी पर्सनल जिन्दगी को भूलना पड़ता है एक सही पत्रकार को एक फोजी कहा जाये तो यह कहना गलत नही मानता, क्योंकि वह भी एक फोजी की तरह ही देश की सरहद पर रक्षा करने की तरह ही काम करता है जिसमे वह दिन रात सब कुछ भूल कर समाज को जानकारी देता है उसके लिये उसका परिवार सब कुछ पीछे छुट जाता है| क्योंकि उसे नही पता की कब कहा क्या होगा और उसे कब कही भी उस जगह को न्यूज़ को कवर करने के लिये भागना पड़ेगा जिस कारण अक्सर उसके परिवार वालो के साथ समय बिताने का मोका नही मिलता और कई बार इसी वजह से घर में अनबन होनी शुरू हो जाती है क्योंकि बहुत कम घर वाले ही उसके काम करने के अंदाज को समझ पाते है | और परिवार वालो को लगता है की यह हमे जानबुझकर समय नही दे रहा और अपनी मस्ती में लगा हुआ इस स्थिति में घरवालो को बड़े प्यार से पत्रकार को समझाना पड़ता है कई बार तो एक रिपोर्टे सारा दिन फ्री ही रहेगा और कई बार तो उसे खाना खाने का समय भी नही मिलता | घंटो काम में व्यस्त रहना पड़ता है उसे यह नही पता चलता की कब दिन का उजाला हुआ और कब चाँद ने अपनी दस्तख दी कई बार तो मैंने यह भी देखा है की एक पत्रकार अपने घर में खुद के बनाये कार्यक्रम में शामिल नही हो पता वह अपना या अपने बच्चो के साथ बने प्रोग्रम या जन्मदिन नही मना पता या खाने के टेबल से बिना खाना खाए ही भागना पड़ता है यही जिन्दगी है एक पत्रकार की | जिस मिया जंग से कम नहीं समझता |
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एक बात कहना चाहूँगा। सच में आज का पत्रकार एक फौजी ही बनकर रह गया है। जाते की अकल और आते की रफल मुहावरा सुना होगा। वहाँ सिर्फ ऑर्डर फ्लो करने पढ़ते हैं, और आज मीडिया में भी ऑर्डर फ्लो करने पड़ते हैं, वो बात जुदा है वहाँ अनुशासन के लिए ऐसा करना पड़ता है और यहाँ सिर्फ दो वक्त की रोटी कमाने के लिए। एक तो दोस्त वर्ड वेरीकेशन हटा दो।
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