Wednesday, May 19, 2010

फिल्म बनाना आसान नही मुझे तब पता चला !!!!!!!!!!!!!!!!

कहते है कालज में मस्ती का मजा कुछ और ही होता है और मै तो कालज में मस्ती के लिये ही जाना जाता हु . मै अपने क्लास में कम दूसरी क्लास में रहना ज्यादा पसंद करता हु और कभी ध्यान में नही रखता की मेरे साथ मेरी क्लास के नही मेरे सीनिअर साथ है . तभी तो बिना सोचे समझे उनसे हर बात कह देता हु  और शायद यही वजह थी  की उस दिन मुझे फिल्म की बारीकिया सीखने के लिये वर्कशॉप में शामिल के लिया गया . आप भी सोच रहे होगे हुआ  कोन सी पहेलिया बुझा रहा है है और क्या बात कर रहा है .  असल में हुआ यू की पिछले दिनी हमारे कालज में फिल्म  बनाने और उनकी छोटी छोटी बाते समझाने के लिये डेल्ही से विशेष तोर पर डिरेक्ट्र ' कुलदीप कुनाल ' को बुलाया गया .अरे भई कुलदीप सर जितने अछे वर्सेटाइल डिरेक्ट्र है उससे भी कही अछे इंसान है उनके साथ पन्द्रह दिन रह कर हमे पता चला की वो कभी भी हार ना मानने वाले इंसान है . कुलदीप सर कई शोर्ट फिल्म बना चुके है और आज उनकी डेल्ही और मुम्बई में उनकी अपनी खुद की पहचान है . इतने बड़े इंसान होने के बावजूद उन्होंने हमे कभी अपनी बड़ी छवि  होने का अहसास नही होने दिया .उन्होंने  हमारे साथ बिलकुल दोस्तों जेसा रवैया अपनाया .आप भी सोच रहे होंगे की कहा किसकी तारीफे करी जा रहा है ???? और क्यों ?????? तो मै आपको बता ही देता हु की बात क्या है और सच में तारीफ़ के काबिल क्यों है ...................
कुलदीप कुनाल सर दूसरी बार हमने कालज में फिल्म मेकिंग   की बारेकिया सिखाने आ रहे थे तो मुझे मेरे दोस्त ने कहा की तू काजर कुनाल सर को ले आ . वो अच् . ऍम वी कालज आये हुए है मै उन्हें लेने चला  गया. तब उनसे मेरी मुलाकात दूसरी बार हुयी थी पहली बार भी अछी तरह से नही मिल पाया था .रास्ते में बातचीत शुरू हो गयी मैंने उन्हें बताया की मै जालंधर में किसी चेनल के लिये रिपोर्टिंग करता हु.  मै आपसे फिल्म की बारीकिया सीखना चाहता हु पर इस बार लगता नही की मे सीख पाउँगा क्यंकि यह वर्कशॉप सिर्फ मास्टर क्लास के बच्चो  के लिये है . उन्होंने कहा की अगर सच में सीखना चाहता है तो आ जाना "मै हु ना " मै हिमत कर अगले दिन वर्कशॉप की क्लास लगाने चला गया तो उझे पहले  मेरी मैम ने मना कर दिया उन्होंने कहा की यह सिर्फ मास्टर क्लास के बच्चो  के लिये है पर मै फिर भी बेशर्मो  की तरह कुनाल सर के पास चला गया और यकीन मानिये उन्होंने भी मुझे निराश नही होने दिया उन्होंने  मैम को बोलकर मुझे  वर्कशॉप  लगाने के लिये रख लिया 
अब क्या था मै अपनी क्लास का इकलोता बच्चा था  जिससे मै और भी ज्यादा  खुश था की मुझे सीखने का काफी मोका मिलेगा .सीनियर के साथ तो मेरी  पहले ही खूब बनती थी और उन पर मै अपना पूरा रोब तो पहले से ही डालता था अरे भई डालु भी क्यों ना..................... कालज में सबसे ज्यादा घुला मिला जो इनके साथ था .उन पन्द्रह दिनों में उझे फिल्म की छोटी छोटी बारेकिया सीखने का पता चला . पता लगा की जिस तीन घंटे  की फिल्म की कुछ झलकिया देखने के बाद जिसे हम सिरे से नकार देती है .उसमे कितने लोगो की मेहनत लगती है. और केमरा के आगे हीरो हेरोइन जो फिल्म का सारा श्रे ले जाते है उनसे भी कही ज्यादा मेहनत केमरा के पीछे काम करने वालो की होती है ........वो केसे दिन रात एक कर मेहनत करते है और कितनी मुश्किल से फिल्म बनाते  है........ चाहे उसमे प्रोडकशन  का काम करने की बात हो या प्री प्रोडकशन सभी काम कितने सारे लोग मिलकर बनाते है जिसे हम आसानी से नकार देते है 
  खैर छोड़िये इन सब बातो को मुझे उन दिनों काफी कुछ सीखने को मिला जिन्हें मै कभी भूल नही सकता वो मेरी जिन्दगी के सबसे अहम दिनों में से एक थे.