बचा तेरा भला होगा .........तू भूखे साधू को भोजन करवा ......तेरी आंखे बता रही है की तेरी जिन्दगी में बहुत परेशानिया है ..........तू सचा ओर भला इन्सान है पर फिर भी लोग तूझे बुरा समझते है तूझे पेसो की कमी है आने वाले दिनों में तुम्हे गाड़ी मिलेगी तुने भूखे बाबा को रोटी खिलाई है अक्सर अपने आस पडोस या खुद अपने घरो में संत बाबा आते देखे होंगे जो पहले तो आपको रोटी खिलने की बात करेंगे ओर बाद में धीरे आपको अपनी बातो के जाल में फसा लेंगे खास कर अगर किसी महिला से बात कर रहे होंगे तो बोलेंगे की तेरा घर वाला तूझे पुरे पेसे नही देता तेरा बेटा तेरा कहना नही मानता वह पढाई में कमजोर है बाबा तुझसे कुछ नही मांगेगा सिर्फ तू भूखे बाबा को खाना खिला दे जब एक बार खाना खिलने बेठो तो यह बाबा बहुत जल्द ही घर का माहोल जान कर ठग लेते है ओर खाना खिलने वाला सोचता ही रह जाता है की उनके साथक्या हुआ है ऐसा ही वाक्य देखने को मिला हमारे मोहले की सुनीता के साथ उन्होंने पहले तो भूखे बाबा को खाना खिलाया बाद में संत बाबा जी बोले बेटा तेरे घर में हमेशा क्लेश रहता है तूझे पेसो की कमी है तुने आज संत बाबा को खाना खिलाया है तेरे दुःख जल्द ही कम हो जायेंगे ऐसा कर घर से चावल के दाने लेकर आ भोली - भाली सुनीता अंदर से चावल के दाने लेकर आये तो बाबा ने रुमाल में रख कर फूंक मरी तो चावल के दाने कितने सारे हो गये फिर बाबा बोले यह तेरे गहने पुराने लगते है बाबा के रुमाल में रख नये हो जायेगे ओर परमात्मा तेरी मनोकामना पूरी करेगा सुनीता ने अपने गहने रखे बाबा जी ने रुमाल में रखे फूंक मारी ओर गहने नये होंगे बाबा वहा से चलेंगे बाद में देखा गहने तो बदले गये ओर नकली गहने उनके हाथ में आ गये उसे तो लगा की वह सपना देख रही है ओर सुनीता को बाबा का आशीर्वाद मिला उनके पति सोहन लाल अंकल से और घर में क्लेश बड गया
Sunday, March 28, 2010
मजाक हर समय नहीं किया जाता.................
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Tuesday, March 9, 2010
अब दर्शन भी बिकते है
अब दर्शन भी बिकते है
देश में भगवान को हर जगह पूजा जाता है लोगो की भावनाए साथ जुडी होती है और लोग भगवान के दर्शन एक बार किसी एतिहासिक जगह पर ले तो उसे अपना सोभाग्य मानते है वैष्णो देवी, स्वर्ण मन्दिर या सिद्धिविनायक मन्दिर के दर्शनों का सपना लोगो के मन में होता है लोग दूर - दूर से भगवान के दर्शन करने के लिये जाते है तांकी उनकी मनते पूरी हो सके उनकी श्रद्धा दर्शनों के साथ जुडी होती है | पर आजकल धार्मिक स्थलों में काफी भीड़ देखने को मिलती है | लोग अब छुटियो में कही पहाड़ी इलाके में घुमने की बजाये धार्मिक स्थलों में जाना पसंद कर रहे है ताकि वो घूम भी ले और साथ में दर्शन भी हो जाये जिस कारण भीड़ दिन बर दिन बढ रही है | जिस वजह से पहले लोग दर्शनों के लिये लाइने तोड़ कर घुस जाया करते थे | पर आजकल दर्शनों के लिये एक नया रिवाज चला है | अब भगवान के दर्शनों के लिए भी वी आई पी होते है जिसमे आप पेसे देकर दर्शन कर सकते है, आपको लम्बी कतारों में लगने की कोई जरूरत नही है और आप ज्यादा पेसे देकर भगवान की आरती में भी शामिल हो सकते है अब इस युग यानि कलयुग मे भगवान के दर्शन भी बिकने लगे है जो लोग सचे मन से पूरी आस्था के साथ दर्शन करने जाते है उनकी भावनाओ को तो ठोस पहुंचती ही है |
Sunday, March 7, 2010
महीने का 3000 खर्चिये और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बनिये पत्रकार
महीने का 3000 खर्चिये और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बनिये पत्रकार
अगर आप शहर में पत्रकार बनना चाहते है तो आपको किसी भी प्रकार की विशेष तोर पर पत्रकारिता की पढाई करने की जरूरत नही है और ना हीं आपको पत्रकारिता की समझ होनी चाहिए | सिर्फ इतना की बस आपकी जेब से हर महीने तीन हजार रुपये ढीले होंगे और आपको सारा काम करने वाले कई लोग मिल जायेंगे जो सारा दिन आपके लिये काम करेंगे और आपको फील्ड में आने की जरूरत भी नही है | आपका चेनेल में नाम भी चलेगा और काम करने की जरूरत भी नही है तो इसलिए शहर में लगी हुई है सेल सेल सेल | आप अपना चेनेलोर आप बनना चाहते है तो भेजिए चेनेल को पेसे और रखिये तीन हजार का केमरामेन और आप लीजिये मजा पत्रकार होने का इसका आपको एक और फायदा होगा आप अपने बाकि के काम भी बड़ी आसानी से कर सकते है और साथ में मोका सेलेब्रटी के साथ फोटो खिचवाने का | एक आसान मोका तो है ना तीन हजार के कई फायदे और साथ में तीन स्कीमे मुफ्त मुफ्त मुफ्त
अगर आप शहर में पत्रकार बनना चाहते है तो आपको किसी भी प्रकार की विशेष तोर पर पत्रकारिता की पढाई करने की जरूरत नही है और ना हीं आपको पत्रकारिता की समझ होनी चाहिए | सिर्फ इतना की बस आपकी जेब से हर महीने तीन हजार रुपये ढीले होंगे और आपको सारा काम करने वाले कई लोग मिल जायेंगे जो सारा दिन आपके लिये काम करेंगे और आपको फील्ड में आने की जरूरत भी नही है | आपका चेनेल में नाम भी चलेगा और काम करने की जरूरत भी नही है तो इसलिए शहर में लगी हुई है सेल सेल सेल | आप अपना चेनेलोर आप बनना चाहते है तो भेजिए चेनेल को पेसे और रखिये तीन हजार का केमरामेन और आप लीजिये मजा पत्रकार होने का इसका आपको एक और फायदा होगा आप अपने बाकि के काम भी बड़ी आसानी से कर सकते है और साथ में मोका सेलेब्रटी के साथ फोटो खिचवाने का | एक आसान मोका तो है ना तीन हजार के कई फायदे और साथ में तीन स्कीमे मुफ्त मुफ्त मुफ्त
Saturday, March 6, 2010
देश में चाहे महंगाई का मुदा हो या देश की सुरक्षा का
देश में चाहे महंगाई का मुदा हो या देश की सुरक्षा का या कोई और मुदा हम हर बार सरकार पर ही आरोप लगाते है और सरकार को कोसते है हर बार कहा जाता है की सरकार का कसूर है मेरे मुताबिक इसमें किसी सरकार का कोई कसूर नही है इसमें कसूर है सिस्टम का जो हमने खुद बनाया है उतने ही कसूरवार हम खुद है जो अपना काम निकलवाने के लिये रिशवत देते है मै पुरे यकीन से बोल सकता हूँ की अगर सरकार में हम में से कोई चुना जाये या हम उसे चुने जिस पर हमे पूरा विश्वास है वो भी आपके वादों पर खरा उतर नही पायेगा क्यंकि वो खुद अकेला नही कुछ कर पायेगा |
पत्रकारिता एक जंग.......
अगर पत्रकारिता की बात करे तो मै यही कहूँगा की पत्रकारिता एक मिशन है जिसमे अपनी पर्सनल जिन्दगी को भूलना पड़ता है एक सही पत्रकार को एक फोजी कहा जाये तो यह कहना गलत नही मानता, क्योंकि वह भी एक फोजी की तरह ही देश की सरहद पर रक्षा करने की तरह ही काम करता है जिसमे वह दिन रात सब कुछ भूल कर समाज को जानकारी देता है उसके लिये उसका परिवार सब कुछ पीछे छुट जाता है| क्योंकि उसे नही पता की कब कहा क्या होगा और उसे कब कही भी उस जगह को न्यूज़ को कवर करने के लिये भागना पड़ेगा जिस कारण अक्सर उसके परिवार वालो के साथ समय बिताने का मोका नही मिलता और कई बार इसी वजह से घर में अनबन होनी शुरू हो जाती है क्योंकि बहुत कम घर वाले ही उसके काम करने के अंदाज को समझ पाते है | और परिवार वालो को लगता है की यह हमे जानबुझकर समय नही दे रहा और अपनी मस्ती में लगा हुआ इस स्थिति में घरवालो को बड़े प्यार से पत्रकार को समझाना पड़ता है कई बार तो एक रिपोर्टे सारा दिन फ्री ही रहेगा और कई बार तो उसे खाना खाने का समय भी नही मिलता | घंटो काम में व्यस्त रहना पड़ता है उसे यह नही पता चलता की कब दिन का उजाला हुआ और कब चाँद ने अपनी दस्तख दी कई बार तो मैंने यह भी देखा है की एक पत्रकार अपने घर में खुद के बनाये कार्यक्रम में शामिल नही हो पता वह अपना या अपने बच्चो के साथ बने प्रोग्रम या जन्मदिन नही मना पता या खाने के टेबल से बिना खाना खाए ही भागना पड़ता है यही जिन्दगी है एक पत्रकार की | जिस मिया जंग से कम नहीं समझता |
एक तरफ आदमी सफलता पाने के लिये पूरी जिन्दगी
एक तरफ आदमी सफलता पाने के लिये पूरी जिन्दगी मेहनत करता मर जाता है फिर भी मीडिया की सुर्खिया में नही आ पता दूसरी तरफ मिक्का राखी सावंत ने मीडिया के सामने का तथा सुर्खिया में आने का नया ढंग बना लिया है | जिससे बहुत कम समय में करियर आसमान की उचाइयो को छुता है और हर समय आपकी पब्लिसिटी के साथ - साथ आपको काम भी मिलता रहता है चाहे आपकी मीडिया में नकारात्मक छवि है | पर बहुत कम समय में अपने करियर को बनाने का नया फंडा यह चाहे थोडा गंदा है पर कहते है," ना गंदा है पर धंधा है"| आप हर मुदे पर वेवजह अपनी राय दुसरो से हट कर दो फिर देखो मीडिया का जादू उनको एक नई खबर मिल जायगी और आपको नया काम |
शहर की सुरक्षा राम भरोसे
शहर की सुरक्षा राम भरोसे
पिछले कुछ समय से शहर में लगातार गुंडागर्दी, छीना - छपटी,और शरेआम किसी का भी खून कर देना आम बात हो गई है जिससे शहर की सुरक्षा पर प्रशन चिन्ह लग गया है | कही भी कोई शहर में घटना होती है तो कुछ ना मिले तो पुलिस के अफसरों के ही तबादले किये जाते है पहले एक फोजी ने दूकानदार की शरेआम हत्या कर उसके बाद अप्रवासियो को पीट दिया | लुट - मार की बाते तो शहर में आम हो गई है | महीने में हत्या की कई खबरे सुनने को मिलती है पुलिस कितनी भी कोशिशे कर ले पर हर बार नाकामयाब ही साबित नजर आती है इसलिए यह कहना गलत नही होगा की शहर की सुरक्षा राम भरोसे है अभी कल ही भाजपा नेता की अनजान लोगो ने हत्या कर दी जिससे साबित होता है की अगर पुलिस अपने लीडरो की सुरक्षा नही कर सकती तो आम आदमी की सुरक्षा का तो सवाल ही पैदा नही होता |
पिछले कुछ समय से शहर में लगातार गुंडागर्दी, छीना - छपटी,और शरेआम किसी का भी खून कर देना आम बात हो गई है जिससे शहर की सुरक्षा पर प्रशन चिन्ह लग गया है | कही भी कोई शहर में घटना होती है तो कुछ ना मिले तो पुलिस के अफसरों के ही तबादले किये जाते है पहले एक फोजी ने दूकानदार की शरेआम हत्या कर उसके बाद अप्रवासियो को पीट दिया | लुट - मार की बाते तो शहर में आम हो गई है | महीने में हत्या की कई खबरे सुनने को मिलती है पुलिस कितनी भी कोशिशे कर ले पर हर बार नाकामयाब ही साबित नजर आती है इसलिए यह कहना गलत नही होगा की शहर की सुरक्षा राम भरोसे है अभी कल ही भाजपा नेता की अनजान लोगो ने हत्या कर दी जिससे साबित होता है की अगर पुलिस अपने लीडरो की सुरक्षा नही कर सकती तो आम आदमी की सुरक्षा का तो सवाल ही पैदा नही होता |
विदेशो में नही घट रहे नस्लवादी हमले
विदेशो में नही घट रहे नस्लवादी हमले
क्या विदेशो में जाने वाले भारतीयों पर हमला होना कभी बंद नही होगा अब उस मासूम गुरशरन का क्या कसूर था वो तो अपने बाप को मिलने तथा छुटिया बिताने के लिये आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में गई थी उस मासूम को तो नस्लवाद के बारे में भी कुछ पता भी नही था कभी पंजाब के बूढ़े माँ - बाप के आँखों के तारो को मार दिया जाता है जिनका सपना होता है की यह उनके लिये कमाने गये है ताकि घर का गुजरा हो सके और कर्जे को उतरा जा सके काम - काज की तलाश में पंजाब से गये इन नवयुवको को यह नही पता होता की वहा जाकर नस्लवाद के शिकार होंगे | आस्ट्रेलिया सरकार भी सेवा सुरक्षा के अस्वाशन दे रही है कार्यवाही कोई नही की जा रही , ताकि भारतीय लोग सुरक्षित हो सके मै तो यही कहूँगा की एक बार सभी भारतीय अपना काम छोड़ वापिस स्वदेश आ जाये तांकी इनका काम रुक जाये और इन्हें पता चले की भारतियो के बिना इनका गुजरा नही चल सकता |
क्या विदेशो में जाने वाले भारतीयों पर हमला होना कभी बंद नही होगा अब उस मासूम गुरशरन का क्या कसूर था वो तो अपने बाप को मिलने तथा छुटिया बिताने के लिये आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में गई थी उस मासूम को तो नस्लवाद के बारे में भी कुछ पता भी नही था कभी पंजाब के बूढ़े माँ - बाप के आँखों के तारो को मार दिया जाता है जिनका सपना होता है की यह उनके लिये कमाने गये है ताकि घर का गुजरा हो सके और कर्जे को उतरा जा सके काम - काज की तलाश में पंजाब से गये इन नवयुवको को यह नही पता होता की वहा जाकर नस्लवाद के शिकार होंगे | आस्ट्रेलिया सरकार भी सेवा सुरक्षा के अस्वाशन दे रही है कार्यवाही कोई नही की जा रही , ताकि भारतीय लोग सुरक्षित हो सके मै तो यही कहूँगा की एक बार सभी भारतीय अपना काम छोड़ वापिस स्वदेश आ जाये तांकी इनका काम रुक जाये और इन्हें पता चले की भारतियो के बिना इनका गुजरा नही चल सकता |
फिल्म देख कर बचे कर रहे अपनी जिन्दगी बर्बाद
आज के समय में हर नवयुवक फिल्म देख कर उनकी बनावटी जिन्दगी की तरफ आकर्षित हो रहा है और उसी तरह की जिन्दगी बिताना चाहता है और खुद को बर्बाद कर बैठते है | वजह यही है की ज्यादातर सभी लोग फिल्मो को देख कर खो जाते है और रियल लाइफ को छोड़ कर फ़िल्मी लाइफ जेसा ही अपना जीवन बनाना चाहते है | पर भूल जाते है की यह सिर्फ फ़िल्मी दुनिया है और इसमें सभी पात्र कुछ समय के लिये इसमें इस किरदार में आते है और उसके बाद अगली फिल्म के लिये कुछ अलग करते है पर आज के युवा उनके पात्र से प्रभावित होकर अपनी जिन्दगी को उस तरह से बनने की कोशिश में लग जाते है जिस कारण अक्सर देखा गया है की अपनी जिन्दगी खराब कर बैठते है या फिर उस स्टाइल को अपना कर जोकर की तरह दिखना शुरू कर देते है और लोग उनको हवा में लाकर उनकी खिलिया उड़ाना शुरू कर देते है पर वो समझते ही की लोग उनकी तारीफ के फुल बांध रहे है कई बार देखा गया है की फ़िल्मी पात्रो से प्रभवित होकर लोग अपनी जिन्दगी में अक्सर उसी प्रकार के डायलोग मारना शुरू कर देते है | कई बार उस पात्र को अपना कर समझते है की हमे भी फिल्मो की तरह आखिर में प्यार मिल ही जायेगा | इसी वजह से अक्सर उन्हें अपनी जिन्दगी खराब करने की कई घटनाये देखी है अभी पिछले दिन ही फेरोजपुर के एक आशिक ने इसी वजह से अपनी जान गवा दी थी और पीछे छोड़ गया अपने बूढ़े माँ बाप को सारी उम्र रोने के लिये इसी वजह से मै कहूँगा की फिल्मे जरुर देखो पर उसको अपनी जिन्दगी पर हावी ना होने दो और हमेशा यही सोचो की फिल्मे सिर्फ हमारे मनोरंजन के लिये है |
पत्रकारिता पर उठता विशवास................
पत्रकारिता पर उठता विशवास................
पुराने समय में पत्रकार बनने के लिये हर प्रकार की जानकारी का होना अवश्य था पत्रकार अपनी कलम को ही अपनी तलवार समझता था वह हर विषय को जानने के लिए उत्सुक रहता था और लिखते समय यह ख्याल रखता था की वह जिस भी विषय के बारे में लिख रहा है उसके बारे में पहले उसे पूरी जानकारी हो | पर आज समय की यह मांग ने सब कुछ बदल दिया है इलेक्ट्रोनिक मीडिया के आने से पत्रकारिता का स्तर निचे गिरा है और मैंने देखा है की शहर में ७० प्रतिशत लोग इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार बने हुए है जिन्हें पत्रकारिता का बारे में कुछ ज्ञान भी नही है उन्हें सिर्फ थोडा बहुत कैमरा चलाना आता हो और अपने दोस्तों से स्क्रिप्ट लिखवा कर अपना और अपने चैनल का गुजरा कर रहे है क्योकि उन दूर बेठे चेनल वालो को भी पूरी सुचना से कोई मतलब नही है उन्हें सिर्फ समाचार ही चाहिए | समाचार को तो वो सिर्फ मसाला लगा कर लोगो के सामने परोस देते है तथा अपने ही ढंग से उस खबर को मोड़ देते है उन्हें सच से कोई मतलब तो है ही नही जिससे पत्रकारिता पर लोगो का विशवास उठता दिखाई दे रहा है |
पुराने समय में पत्रकार बनने के लिये हर प्रकार की जानकारी का होना अवश्य था पत्रकार अपनी कलम को ही अपनी तलवार समझता था वह हर विषय को जानने के लिए उत्सुक रहता था और लिखते समय यह ख्याल रखता था की वह जिस भी विषय के बारे में लिख रहा है उसके बारे में पहले उसे पूरी जानकारी हो | पर आज समय की यह मांग ने सब कुछ बदल दिया है इलेक्ट्रोनिक मीडिया के आने से पत्रकारिता का स्तर निचे गिरा है और मैंने देखा है की शहर में ७० प्रतिशत लोग इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार बने हुए है जिन्हें पत्रकारिता का बारे में कुछ ज्ञान भी नही है उन्हें सिर्फ थोडा बहुत कैमरा चलाना आता हो और अपने दोस्तों से स्क्रिप्ट लिखवा कर अपना और अपने चैनल का गुजरा कर रहे है क्योकि उन दूर बेठे चेनल वालो को भी पूरी सुचना से कोई मतलब नही है उन्हें सिर्फ समाचार ही चाहिए | समाचार को तो वो सिर्फ मसाला लगा कर लोगो के सामने परोस देते है तथा अपने ही ढंग से उस खबर को मोड़ देते है उन्हें सच से कोई मतलब तो है ही नही जिससे पत्रकारिता पर लोगो का विशवास उठता दिखाई दे रहा है |
क्यों गिरा भारतीय हाकी टीम का प्रदर्शन..........
क्यों गिरा भारतीय हाकी टीम का प्रदर्शन..........
भारतीय हाकी टीम ने विशव कप के पहले ही मैच में अपनी पड़ोसी देश पाकिस्तान को मात दी तो हर तरफ भारतीय टीम की वाह - वाही होनी शुरू हो गयी और हर तरफ चक दे इंडिया के नारे लगने शुरू हो गये लोगो के मन में विशवास पैदा हुआ की इस बार भारत में हो रहा विशव कप भारत की झोली में ही आयेगा पर उसके तुरंत बाद भारतीय होकी ने एक बार फिर अपने प्रदर्शन से निराश किया पहले ऑस्ट्रेलिया से हारा तो कल स्पेन से बुरी तरह से पिटा | तो किसी ने हार का जिमेदार रेफरी को बताया जिसने भारतीय टीम के स्ट्राइकर शिवेंद्र सिंह को गलत ढंग से दो मैचो के प्रतिबंद लगाने की वजह से कही तो किसी ने संदीप सिंह को पेनाल्टी कोर्नर के दुबारा मिले मोको को गवाने की वजह से हार का कारण बताया | पर भारतीय हाकी टीम के बुरे प्रदर्शन की वजह यह नही है दरसल भारतीय हाकी टीम की यह दुर्दशा का कारण खुद भारतीय हाकी संघ है जिसने विशव कप से कुछ दिन पहले ही अपनी टीम के साथ मतभेद की सुर्खियो में थी | हाकी संघ ने भारतीय हाकी टीम के खिलाडियों को पुरे पैसे नही दिए थे जिस कारण कुछ दिन पहले भारतीय हाकी टीम अपने अभ्यास या प्रदर्शन की वजह से सुर्खियो में नही आई बल्कि भारतीय हाकी संघ के साथ मतभेद की वजह से ही सुर्खियो में रही जिस कारण खिलाडी अपना पूरा ध्यान खेल की रणनीति में ना बना सके और आज अपने देश में हो रहे विशव कप के शुरुआती चरण में ही बाहर हो चुके है |
भारतीय हाकी टीम ने विशव कप के पहले ही मैच में अपनी पड़ोसी देश पाकिस्तान को मात दी तो हर तरफ भारतीय टीम की वाह - वाही होनी शुरू हो गयी और हर तरफ चक दे इंडिया के नारे लगने शुरू हो गये लोगो के मन में विशवास पैदा हुआ की इस बार भारत में हो रहा विशव कप भारत की झोली में ही आयेगा पर उसके तुरंत बाद भारतीय होकी ने एक बार फिर अपने प्रदर्शन से निराश किया पहले ऑस्ट्रेलिया से हारा तो कल स्पेन से बुरी तरह से पिटा | तो किसी ने हार का जिमेदार रेफरी को बताया जिसने भारतीय टीम के स्ट्राइकर शिवेंद्र सिंह को गलत ढंग से दो मैचो के प्रतिबंद लगाने की वजह से कही तो किसी ने संदीप सिंह को पेनाल्टी कोर्नर के दुबारा मिले मोको को गवाने की वजह से हार का कारण बताया | पर भारतीय हाकी टीम के बुरे प्रदर्शन की वजह यह नही है दरसल भारतीय हाकी टीम की यह दुर्दशा का कारण खुद भारतीय हाकी संघ है जिसने विशव कप से कुछ दिन पहले ही अपनी टीम के साथ मतभेद की सुर्खियो में थी | हाकी संघ ने भारतीय हाकी टीम के खिलाडियों को पुरे पैसे नही दिए थे जिस कारण कुछ दिन पहले भारतीय हाकी टीम अपने अभ्यास या प्रदर्शन की वजह से सुर्खियो में नही आई बल्कि भारतीय हाकी संघ के साथ मतभेद की वजह से ही सुर्खियो में रही जिस कारण खिलाडी अपना पूरा ध्यान खेल की रणनीति में ना बना सके और आज अपने देश में हो रहे विशव कप के शुरुआती चरण में ही बाहर हो चुके है |
देश के राष्ट्रिय खेल का बुरा हाल होने कि वजह में कही न कही क्रिकेट जिमेदार....................
आज देश के हर बच्चे के मन में क्रिकेट खेलने कि ललक होती है वह कही भी कोई भी जगह बनाकर क्रिकट खेलना शुरू कर देते है जिस किसी से भी पूछो आप क्या बनना चाहते है तो वो कहता है कि मै सचिन बनना चाहता हूँ मै महिंदर सिंह धोनी जेसा बनना चाहता हूँ पर किसी के मन में यह नही होता कि मै धनराज पिल्लै कि तरह बनू या शिवेंद्र सिंह कि तरह कोई नही कहता कि मै हाकी खेलना चाहता हूँ उन्हें उस प्रकार का माहोल नही मिलता कि उनके मन में हाकी खेलने कि ललक पैदा हो उन्हें हाकी खेलने के लिए गुण नही मिल पाते जबकि हर कोई अपने गली मोहले में या घर में बैठ कर ही क्रिकट खेलना शुरू कर देता है शुरू से ही उनके मन में ही क्रिकेट खेलने का जनून पैदा होता है उपर से हमारी मीडिया क्रिकेट को इतना दिखाती है की हर कोई क्रिकट देखने में मुशकल हो जाता है क्योंकि मीडिया जो दिखाती है की उसे ही भारत के लोग मानते है उपर से हर विज्ञापन पर क्रिकटर छाए हुए है और साथ में बॉलीवुड के स्टार के साथ उनका तड़का देखने को मिलता है जिस वजह से हाकी टीम के सदस्यों का मनोबल निचे गिरता है और वह अपना प्रदर्शन खराब कर बैठते है जिस वजह से देश का राष्ट्रिय खेल होने के वावजूद हाकी का भविष्य खतरे में जाता दिखाई दे रहा है |
Thursday, March 4, 2010
कल करे सो आज कर आज करे सो अब
कई बार हम सोचते रहते है कि हम ये काम कर ले पर हम वो काम नही करते ........सिर्फ हवाई महल ही बनाते रहते है और वक़्त हाथ से निकल जाता है और हम सिर्फ सोचते रह जाते है इसलिए जो मन में आये वो कर लेना चाहिए हमे सिर्फ सोचना ही नही चाहिए वो कहते है न...... कल करे सो आज कर आज करे सो अब ..........बस इसलिए कहते है कि जो सोचा है उसे एक बार कर दो पता नही ये समय फिर आये या ना आये और हम सिर्फ हाथ मलते ही रह जाये क्योकि ये बिता गया समय फिर वापिस नही आता...........
लेखक धन्यवाद
पूजा अरोड़ा पंकज कपाही
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