Thursday, April 22, 2010


जिन्दगी निकल जाती है रूठने मनाने में !
कहते है झगड़ा अक्सर वही होता है jha  प्यार होता है और झगड़े से प्यार और भी बड़ता है दोस्तों के साथ छोटी छोटी बातो पर लड़ना और फिर उन्हें मनाना सच में बड़ा मजा आता है और यह दिन ज्यादातर कलज और स्कूल में ही होते है तब पढाई के इलवा कोई और सिरदर्दी नही होती
मै जब दोआबा कालज में पड़ने गया तो मन में मीडिया में आने की कई उमीदे थी तब मेरे कई दोस्त बने शुरूआती दिनों में सबसे पहले मिशा अवतार और जतिन मेरे दोस्त बने इनके साथ सारा दिन खूब गपे मारनी पर आपस में लड़ते रहना कभी बंक मार कर तलं घुमने चले जाना तो कभी खी और गेदी लगाने जाना तब मै पहली बार लडकियों के साथ इतना घुला मिला था इस वजह से मै भावुक होकर लडकियों से जयादा बाते करता और अक्द्र मुझे लडकिय गलत समझ लेती शू में मैंने अपनी क्लास की एक लडकी को बता दिया की मुझे अपन क्लास की ही चे लडकिय पसंद है उपर से मै अपनी क्लास छोड़ कर बड़ी क्लास की लडकियों से ज्यादा बाते करने लगा जिस वजह से मेरी छवि लडकियों में खराब होगयी और मुझे लडकिय प्ले बॉय समझने लगी उपर से मैंने रक नाटक किया जिसमे मुझे श्रभी का पात्र मिला मै इस पात्र में इस तरह से खो गया की मेरे चलने और बोलने का ढंग शराबियो की तरह हो गया उपर से मेरी आँखे श्रभी जेसी लगती थी आवाज तो मासाहल्लाह वेसे ही खूब है तो अब मुझे लडकिय प्ले बॉय के साथ साथ श्रभी भी समझने लगी यह तो भगवान का शुक्र है की तभी मुझे मेरे सबसे प्यारे यार बने जिनके साथ आज हम अपने डिपार्टमेंट में अस असा पी के नाम से जाने जाते है अरे भी वो पुलिस वाले अस अस पी नही बल्कि..........  यानि की साहिल शिवम् और  पंकज हम जब भी कालज जाते इकठे जाते सारा दिन इकठे रहते जिससे अक्सर सभी जलते खासकर हमारी क्लास की हूलपरिया यानि लडकिया  हम तीनो बिना किसी की प्रवाह किये खूब मस्ती करते अगर किसी बात पर नाराज भी हो जाते तो शाम तक एक दुसरे को फोन कर मना लेते और परीक्षा के दिनों एक दुसरे को बोलते यार कुछ नही आता कसम से कल तो पड़ा ही नही गया और सेल कमीने परीक्षा में खूब लिखते दोनों हस्तल में इकठे रह कर पड़ लेते उपर से परीक्षा के दिन कालज मी आकर किसी को न पड़ने देते क्योंकि वो तो लगातार सब कुछ अची तरह से पड़ कर आयी होते 
अब हमारा तीसरा स्मेश्तेरे था और इसमें नई विधार्थी आये थे सभी ने प्लान बनाया ता की जिस तरह से हमारे सीनिर ने हमारी कशा की लडकिया फसाई थी हम भी वेसे ही फसेंगे पर गोर तलब है की तीनो को को९ भी लडकी पसंद ही नही आयी और हमारी उमीदो पर पानी फिर गया इस दोरान हमारे कालज में डेल्ही से आये कुनाल सर ने फिल्मो को बारीकिय समझाने के लिए पन्द्रह दिन की वर्कशाप लगाई जिसमे सिर्फ सदी क्लास ही शामिल हो सकती थी मै ढके से इस सेमीनार में शामिल हो गया और यह मेरे दो बनये दोस्त बने पूजा और करिश्मा  to be continued..................................
INTERVAL

1 comment:

  1. प्रिये दोस्त पंकज मुझे आपके दुआरा लिखा गया ब्लॉग बहुत ही पसंद आया है | जो अपने अपनी कालेज और स्कूल लाइफ के बारे में लिखा है वो चीज मुझे बहुत अछी लगी है | में अपने कुछ विचार आपको लिख के भेजा करूँगा कृपया करके उसको अपने ब्लॉग में लगा लिया करे | और जो गलतियाँ है वो मुझे बता दिया करे | में आशा करता हु की अप ऐसे ही अपने ब्लॉग को जारी रखंगे और हमे भी अछी अछी बाते बताते रहेंगे |

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